मैं तो फिर भी खुश नसीब था, कि तेरे प्यार के ख्वाइश मे रोया
तुम बदनसीब को यह खबर तक नही है कि क्या क्या तुमने खोया
कोई बरगद कि जड़ जैसे, गहरी हैं मेरी चाहत
इतने जो हिलते हो, कब मिलेगी तुम्हे प्यार की राहत?
ठुकराते ठुकराते तुम थक जाओगे
अपनाते अपनाते मैं तो कभी नही
रोज़ रोज़ सच्चा प्यार नही पाओगे
अब तो वैसी दुनिया नही रही