Thursday, April 14, 2011

Arz hai...

मैं कभी बदलता नही, तुम भी यह जानते हो
पत्थर कभी पिगलता नही, यह तो मानते हो

दिल खोलके बैठा हूं, उम्मीद है भर जाए
गम मिट जाए, ज़िंदगी निखर जाए

मैंने माँगा ही क्या तुझसे, क्यों रखते हो मुझे खामोशी मे?
क्या कुछ नही पाओगे मुझसे? क्या नही थे तेरी आँखें कभी मदहोशी मे?

अगर प्यार ज़ुल्म है तो सज़ा ए इश्क, तन्हाई भी मंज़ूर है
मेरा प्यार, मेरी वफ़ा, यह मेरी शान है, मेरा घुरूर है

मैं चाहता हूं तुझे, और चाहता ही रहूँगा
यह इंतेज़ार की घड़ी को भी सहता ही रहूँगा

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